Monday, December 19, 2011

मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई (बाल-गीत)

  "अरुण कुमार निगम"
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई
तयँ बघुवा के मौसी दाई.
कुकुर देख के थर थर काँपे
ठउँका दउँड़त प्रान बचाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई……………….

नान नान तोर पीला दू
किंजरें तोर पाछू-पाछू
उतलंगी बड़ करत हवयँ
मुड़ी कान ला धरत हवयँ.

रोज-रोज मोर रँधनी मा आके
चोरा के खावयँ दूध-मलाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई..................

धान के  कोठी  के  खाल्हे
मुसुवा  मन  बैठे   ठाले
खइता अन के करत हवयँ
अपन पेट ला भरत हवयँ.

मुसुवा ला तुक तुक के मारे
तयँ किसान के करे भलाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई................

म्याऊँ म्याऊँ गुरतुर बोली
किंदरत हस खोली खोली
देख तोला भागय मुसुवा
चाल ढाल मा तयँ सिधवा.

कइसे गजब लफंगा होगे
तोर ये बनबिलवा भाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई...........

सौ मुसुवा ला खाथस तयँ
हज करे बर   जाथस तयँ
संसो  मा   मुसुवा   आगै
कोन  नरी    घंटी   बाँधै.

नान्हेंपन ले कहिनी सुन के
जानत हन हम तोर चतुराई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई...........

तोर रेंगई ऊपर मरगे
कतको टूरी मन तरगे
रिंगी चिंगी चेंदरी पहिन
बड़े-बड़े माडल बनगिन.

मटक मटक मोटियारिन करथें
कैट-वाक् मा खूब कमाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई...........

(छत्तीसगढ़ में जब नन्हें मुन्नों को बिल्ली दिखाते हैं तब प्यार से बिल्ली को मुनु बिलाई कहते है.यह एक तरह का प्यार भरा सम्बोधन है.)

गीत का हिंदी में भावार्थ :       अरी मुनु बिल्ली, तू शेर की मौसी माँ है, कुत्ते को देख काँपती है, दौड़-भाग कर अपने प्राण बचाती है. 

तेरे नन्हें-नन्हें दो बच्चे तेरे पीछे-पीछे घूमते हुये शरारत करते हुये कभी एक दूसरे के मुँह को तो कभी कानों को पकड़ने की क्रीड़ा करते हैं. प्रतिदिन मेरी रसोई में आकर दूध-मलाई चुरा कर खाते हैं.

धान की कोठी के नीचे चूहे बैठे-ठाले अपना पेट भरते हैं  किंतु अनाज का नाश भी करते हैं. तू चुन-चुन कर चूहों को मारकर किसानों की भलाई करती है.

म्याऊँ-म्याऊँ की तेरी बोली है, इस कमरे से उस कमरे तू आती-जाती है, तुझे देख चूहे भाग जाते हैं. चाल-ढाल में तू तो बड़ी सीधीसादी है किंतु तेरा भाई     बन-बिलाव कैसे इतना लफंगा हो गया ?

मुहावरे में कहा जाता है- सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली,  चूहे चिंता मग्न हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे !  बचपन से कहानियों में तेरी चतुराई के बारे में हम सुनते आ रहे हैं.

तेरी चाल पर फिदा होकर कितनी ही युवतियाँ तर गईं. चिंदी जैसे छोटे-छोटे परिधान पहन कर माडल कहलाने लगी हैं .” कैट-वाक “ करके ये खूब कमाई भी कर रही हैं.

Tuesday, November 1, 2011

श्रीमती सपना निगम

                    “ छत्तीसगढ़ –  स्थापना दिवस के राज्योत्सव मेला”                       

                                                                      
                      अंधा लंगड़ा बड़े मितानी                       
सुने हो हौ तुम कहानी
कहूँ जनम के दुनो संगवारी
हो है लाग मानी
भीख मांग के करे गुजारा
उमन दुनो परानी
इक दूसर संग मेला घूमत
काट दईंन जिनगानी
लंगड़ा के रहे नाम बंशी
अँधा के गंगा राम
धरम धाम के नाम ला लेके
कर आइन चारों धाम
राजिम जाके राजीव लोचन
कर आइन परनाम
रायपुर तीर मा डारिन डेरा
करन लगिन अराम
वही बखत राज्योत्सव मेला के
चले रहे बड़ नाम
मेला घूमे के सउक मा
बंशी के होगे नींद हराम
लंगड़ा कहे राज्योत्सव मेला
चल तोला देखातेंव
आनी बानी के खई ख़जेना
चल तोला खवातेंव
किसम किसम के गाना बजाना
चल तोला सुनातेंव
झूमा झटकी के नाचा गाना
चल तोला नचवातेंव
चकरी झुलना हवाई झुलना
चल तोला झुलातेंव
लईका मन के छुक छुक रेल मा
चल तोला बैठातेंव
अइसन कस राज्योत्सव मेला
कभू नहीं जा पाएँन
अभी कहूँ तोर संग मिल जाहे
चल ओला भी देख आयेन
अँधा कहे मैं देखिहौं का
मैं दुनों आखी के अँधा
यिहें आके बिसरागेहों मैं
भीख मांगे के मोर धंधा
चल आजा बइठ जा मोर खान्द मा
मोर नरी के फंदा
बड़े फज़र ले मैं उठ जाथौं
तैं रहिथस उसनिन्दा
छत्तीसगढ़ महतारी के
रखले मर्यादा जिंदा
भीख मांगे मा हो जाही
धनही दाई शर्मिंदा
जीयत मनखे के बोझा ला ढोवत
खान्द हा मोर पीरा गे
अऊ कतेक ले किन्जरबे तैंहा
जांगर मोर सिरागे
हमर असन निःशक्त जन के
सरकार ला सुधि आ गे
अपन पांव मा हो जा खड़ा तैं
साभिमान जगा गे

श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
                                  छत्तीसगढ़
(शब्दार्थ : उमन दुनो परानी= वे दोनों प्राणी,  सउक मा=शौक में, आनी बानी के खई ख़जेना
=विविध तरह का खाना-खजाना,  यिहें आके बिसरागेहों=यहाँ आकर भूल गया,                बइठ जा मोर खान्द मा= बैठ जा मेरे कंधे पर, मोर नरी के फंदा= मेरे गले पड़ी मुसीबत, फज़र=सुबह,  उसनिंदा=अर्धनिद्रा में, धनही दाई= धान से परिपूर्ण माता,                       अऊ कतेक ले किन्जरबे तैंहा
      =और कितना तुम सैर करोगे, जांगर मोर सिरागे=शरीर शक्तिहीन हो चला)



Wednesday, October 5, 2011

नवराती परब मा


  ओ मईया............
                   माता का सिंगार
                               (1)
मूड़  मुकुट  मोती  मढ़े ,  मोहक  मुख  मुस्कान
नगन नथनिया नाक मा, कंचन कुण्डल कान..........ओ मईया..........
                                (2)
मुख-मण्डल चमके-दमके ,   धूम्र-विलोचन नैन
सगरे जग बगराये माँ , सुख-सम्पत्ति, सुख-चैन. .........ओ मईया..........
                                (3)
लाल चुनर लुगरा लाली , लख-लख नौलखा हार
लाल  चूरी  , लाल टिकुली  ,  सोहे  सोला  सिंगार. .........ओ मईया..........
                                (4)  
करधन   सोहे   कमर  -  मा   ,   सोहे   पैरी   पाँव
तोर अँचरा  दे जगत – ला , सुख के  सीतल छाँव. .........ओ मईया..........
(5)
कजरा सोहे नैन मा, मेंहदी सोहे हाथ
माहुरसोहे पाँव मा , बिंदी सोहे माथ. .........ओ मईया..........
                             (6)
एक हाथ मा संख हे, एक कमल के फूल
एक हाथ तलवार  हे ,  एक हाथ तिरसूल. .........ओ मईया..........
                             (7)
एक हाथ मा गदा धरे, एक मा तीर कमान
एक  हाथ - मा चक्र हे ,  एक  हाथ  वरदान. .........ओ मईया..........
                             (8)
अष्टभुजा  मातेस्वरी  ,  महिमा  अपरम्पार
तीनो लोक तोर नाम के होवे जयजयकार. .........ओ मईया..........

                   नव-रात्रि पर्व  पूजा
                             (9)
नवराती धर आये हे ,  नवदुरगा    नव रूप
गरबा खेलय भक्त संग, आनंद अति-अनूप. .........ओ मईया..........
                           (10)
नवग्रह  के  पूजा  करयँ  ,   पूजैं  गौरी - गनेस
खप्पर-कलस ला पूज के, काटयँ कस्ट-कलेस. .........ओ मईया..........
(11)
तोर  चरन  अर्पन करौं ,  नरियर – मेवा - पान
जय अम्बे जगदम्बे माँ ,  जग के कर कल्यान. .........ओ मईया..........
(12)
मन बिस्वास के आरती  , सरधा भक्ति के फूल
अरपित हे तोर चरन मा, हाँसके कर तँय कबूल. .........ओ मईया..........
(13)
अगर - कपूरके आरती , गोंदा के गरमाल
पूजा बर मँय लाये हौं,कुंकुम सेंदूर गुलाल. .........ओ मईया..........

          माता के विविध रूप और महिमा                            
                             (14)
ब्रम्हानी - रूद्रानी माँ   ,  कमला रानी देख
सुर नर मुनि जन दुवार मा पड़े हें माथा टेक. .........ओ मईया..........
(15)
सुम्भ-निसुम्भ सँहार करे, मधुकैटभ दिये मार
जब - जब पाप खराए हे  ,   करे जग के उद्धार. .........ओ मईया..........
(16)
डम डम डम डमरू बजै, बाजै ताल-मिरदंग
भक्तन   नाचै  झूम  के, चघे  भक्ति के  रंग. .........ओ मईया..........
                             (17)
देव – मुनि  सुमिरैं  सदा ,  सेवा गावैं  संत
बेद-पुरान बखान करैं, महिमा तोर अनंत. .........ओ मईया..........
                             (18)
माई  के   मंदिर  सदा    ,   जगमग  जागे  जोत
जेखर दरसन मा मिलय सुख-सरिता के स्त्रोत. .........ओ मईया..........
                             (19)
दुरगा के दरबार मा , मिटे दरद दु:ख क्लेस
महिमा गावयँ रात-दिन ,ब्रह्मा बिस्नु महेस. .........ओ मईया..........
                             (20)
किरपा कर कात्यानी , मोला तहीं उबार
तोर सरन मा आये हौं, भव-सागर कर पार. .........ओ मईया..........
(21)
हे महिसासुर-मर्दिनी ,  सुन ले हमर गोहार
पाप मिटा अउ दूर कर, जग के अतियाचार. .........ओ मईया..........
                             (22)
दरसन दे  जगमोहिनी ,  मन  परसन हो जाय
कट जाय कस्ट कलेस अउ सबके नैन जुड़ाय. .........ओ मईया..........                           
(23)
सुमिरौं तोरे नाम ला, जस गावौं दिनरात
सर्वमंगला सीतला, सुख के कर बरसात. .........ओ मईया..........
(24)
शैल – पुत्री ,  सिंहवाहिनी , पैंयालागौं तोर
तोर सरन मा आये हौं, दु:ख संकट हर मोर. .........ओ मईया..........
(25)
तीन लोक चारों जुग मा, तोर ममता के छाँह
जगदम्बा माँ उबार ले ,  मोर  पकड़  के  बाँह. .........ओ मईया..........
(26)
हे महामाया  दूर  कर ,    जग के मायाजाल
मन झन अरझे मोह मा ,काट दे सब जंजाल. .........ओ मईया..........
                             (27)
पाँव परत हौं चंडिका ,दु:ख दुविधा कर दूर
तोर सरन मा आये ले, दु:ख बन उड़ै कपूर. .........ओ मईया..........
                             (28)
बमलेस्वरी बल   दान दे , मयँ बालक कमजोर
तोर किरपा मिल जाय तो, जिनगी होय अंजोर. .........ओ मईया..........
                             (29)
दंतेस्वरी के दुवार - मा ,  पूरन   मनोरथ    होय
सुन के मयँ चले आय हौं, मन-बिस्वास सँजोय. .........ओ मईया..........
                             (30)
अरज करौं  माँ सारदा ,  दे  सक्ति  के दान
तयँ माता संसार के, हम सब तोर संतान. .........ओ मईया..........
                             (31)
सुमिरत हौं समलेस्वरी , संकट काट समूल
तोर चरन अरपन करवँ, मन-सरधाके फूल. .........ओ मईया..........
(32)
अनाचार अनियाय के,  समूहे कर  दे नास
अँधियारी घिर आय हे, तयँ कर दे परकास. .........ओ मईया..........

          नव-रात्रि पर्व का पावन वातावरण
(33)
नगर डगर हर गाँव गली,नवराती के धूम
कोन्हों उतारैं आरती ,  कोन्हों  नाचैं  झूम.                     
                             (34)
गाँव सहर नवराती मा, मण्डप मंच सजायँ
नर -नारी सरधापूर्वक ,  मूरत  तोर मड़ायँ. .........ओ मईया..........
                             (35)
गली-गली झिलमिल झालर, सरधा भक्ति के गीत
तीरिथ  जइसे  चारों  मूड़ा, लागय    परम - पुनीत. .........ओ मईया..........
(36)
झाँकी कहूँ सजायँ हें , कहूँ  मड़ई  के  जोर
गली गली गमके-गूंजै, जय माता के सोर. .........ओ मईया..........
(37)
कहूँ नाच –गम्मत  कहूँ   कवि सम्मेलन होय
कहूँ संत दरबार सजय, कहूँ मेर कीरतन होय. .........ओ मईया..........
                             (38)
सिद्धिपीठ , मंदिर – मंदिर ,  जले जँवारा जोत
जेखर दरसन मात्र ले ,काज सुफल सब होत. .........ओ मईया..........
                             (39)
कई कोस पैदल चलयँ, हँसि-हँसि चघयँ पहार
मन-  भक्ति जगाइ के,  भक्तन  पहुँचय  दुवार. .........ओ मईया..........
(40)
कोन्हों राखयँ मौनब्रत,  कोन्हों करयँ उपास
माँ तोला अरपित करयँ , सरधा अउ बिस्वास. .........ओ मईया..........
(41)
भक्ति भाव मा डूब के, ज्योति-कलस जगायँ
नर-नारी नवराती मा, मनवांछित फल पायँ. .........ओ मईया..........
(42)
माता सेवा जब सुनै , मन मा उठै हिलोर
तन-मन नाचै झूम के , होवै भाव-विभोर. .........ओ मईया..........

            माता से मनोकामना
(43)
साँझ बिहिनिया आरती , रोज उतारौं तोर
भवसागर ले पार कर , जीवन-डोंगा मोर. .........ओ मईया..........
(44)
सबो जियैं  संसार  मा ,  दया-मया  के संग
भेदभाव मिट जायँ सबो, होय कभू ना जंग. .........ओ मईया..........
(45)
धरम-नीति के जीत हो,  दया मया हो  चँहुओर
पाप कुमति के नास हो, अइसन कर दे अँजोर. .........ओ मईया..........
(46)
मात-पिता के मान हो, गुरु के हो सम्मान
मनखे बन मनखे जीयै, सद् बुद्धि  दे दान. .........ओ मईया..........
(47)
लोभ मोह हिंसा हटय  ,  काम - क्रोध मिट जाय
सत् जुग आये लहुट के,अइसन कर तयँ उपाय. .........ओ मईया..........
(48)
अनपुरना के वास हो ,  खेत -  खार  -खलिहान
कोन्हों लांघन झन रहय, समरिध होय किसान. .........ओ मईया..........
(49)
तोर बसेरा कहाँ नहीं, कन-कन तहीं समाय
जउन निहारे भक्ति से ,तोर दरसन फल पाय. .........ओ मईया..........
(50)
अँचरा - मा  ममता  धरै , नैनन  धरे  सनेह
बिन माँगे आसीस मिलै, सक्ति समाये देह. .........ओ मईया..........    
(51)
नई माँगौं सोना चाँदी, मांगौं आसीरवाद
सबै जिनिस ले कीमती,माता के परसाद. .........ओ मईया..........
(52)
कटै तोर सेवा करत, जिनगी के दिन चार
तोर  नाम  के आसरा ,  तहीं  मोर  संसार. .........ओ मईया..........                

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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